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हज़रत मुहम्मद का अखलाक़

हज़रत मुहम्मद; क़यामत तक आने वाले सभी इंसानों के लिए एक आदर्श और उनसे सीखने के लिए भेजे गए एक मार्गदर्शक हैं। “तुम में से अल्लाह की रज़ा और आख़िरत के दिन पर यकीन करने वाले और अल्लाह के नाम को बहुत ज़्यादा जपने वालों के लिए कोई शक नहीं की अल्लाह के रसूल में एक खूबसूरत उदाहरण है। ” [1] इस कारण से, पैगंबर मुहम्मद की एक श्रेष्ठ नैतिकता है जिसमें जीवन के हर पहलू को शामिल किया गया है: “आपके पास निश्चित रूप से एक श्रेष्ठ नैतिकता है।” [2]

रास्ते में मिलने वाले इंसानों को पहले सलाम करते और जब तक वह इन्सान हाथ नहीं छोड़ता तब तक वह भी नहीं छोड़ते थे। सामने वाले इंसान के साथ बात करते हुए कभी मुंह नहीं फेरते और पूरे तरीके से बात करते । [3]

वह लोगों को अच्छे शब्द कहते थे, मुसकुराता हुआ चेहरा रखते थे और कहते थे कि इस तरह का व्यवहार करना अच्छी बात है ।[4] उनके कभी कोई बुरी बात नहीं निकलती थी। उन्होंने कहा कि अच्छे अखलाक़ रखने वाले लोग ही अच्छे होते है। [5]

वह उन लोगों के निमंत्रण का जवाब देते थे जो उन्हें अपने घरों में आमंत्रित करते थे और उनके दिलों को खुश करने के लिए वहां नफिल नमाज़ पढ़ते थे। जब वह किसी का ग़लती या अनुचित कपड़ों में देखते थे, तो खुद कुछ नहीं कहते थे, ताकि वह उसे शर्मिंदा न करे, और वह दूसरे लोगों के कहने का इंतज़ार करते थे। [6]

पैगंबर मुहम्मद ने अपने जीवनकाल में किसी भी महिला या गुलाम के खिलाफ हाथ नहीं उठाया। वह अपने साथ हुए अन्याय का बदला नहीं लेते थे।[7] जब हज़रत आयशा पैगंबर मुहम्मद की नैतिकता के बारे में बात करती हैं, तो वह कहती हैं कि उन्होंने बुराई का जवाब बुराई से नहीं दिया, बलके उन्होंने लोगों को माफ कर दिया और उनकी गलतियों को नज़रंदाज़ कर दिया। [8]

हज़रत मुहम्मद अपने सच्चे शब्दों के लिए जाने जाते थे और अपने शब्दों से पीछे नहीं हटते थे। पेयघांबर मुहम्मद की नबुअत से पहले  उनसे खरीदारी करके उनसे कहां आप यहां थोड़ी देर इंतज़ार करें में अभी पैसे लेकर आता हूं  कहते हुए वहां से चला गया और वह इस बात को भूल गया। तीन दिन बाद जब उसे याद आया और वह वापस आया तो उसने पेयघांबर मुहम्मद को उसी जगह पाया। और पेयघांबर उसे देख कर बजाए ग़ुस्सा करने के यह कहते हैं: “ए जवान आदमी! आपने मुझे परेशान किया, में तीन दिन से आपका यहां इंतज़ार कर रहा हूं।” [9]

हज़रत मुहम्मद, उनके ऊपर लगाए गए इल्ज़ाम और खिलाफ बोलने वालों पर इतना क्रोधित नहीं होते थे जितना वह बताई गई इबादतों को पूरा ना करके और भी ज़्यादा इबादत करने वाले या पर उसमें कोई परेशानी नहीं सोचने वालों को ठीक निगाह से नहीं देखते थे। वह कहते थे, “हम तुम्हारी तरह नहीं हैं; अल्लाह ने तुम्हारे सारे गुनाह माफ फार्मा दिए हैं” कहने वालों पर घुसा करते और कहते थे में अल्लाह से सबसे ज़्यादा डरता हूं और वह सबसे बेहतर जानने वाला है। जबकि पैगंबर मुहम्मद ने किसी के अपमान के लिए खेद महसूस नहीं किया, जब किसी ने माल बांटते समय उनके साथ उचित व्यवहार नहीं किया गया है, ये सुनने के बाद उन्होंने यह कहते हुए सहन किया कि पैगंबर मूसा अधिक गंभीर अपमान के साथ धैर्यवान थे। [11]

जिस किसी को मदद कि ज़रूरत होती उनकी मदद के लिए दौड़ते, यतीमों के साथ देने के लिए भी कहा, बेवाह औरतों की मदद और गरीबों की मदद करने वाले को अल्लाह की राह में जंग करने वाले के सवाब के बराबर कहा । [12] नौकर एक अमानत है ये कहते हुए उन्होंने उनके मालिकों को यह भी कहा कि जो खुद खाओ वही उन्हें भी खिलाओ को खुद पहनो वही उन्हें भी पहनाओ और जो काम करने की ताकत उनमें ना हो वह काम उनसे नहीं करवाओ।[13]

वे बुजुर्गों का आदर करते थे और बच्चों के प्रति दयालु थे। बच्चों के प्रति उनका बहुत स्नेह था। वह बच्चों के साथ बच्चे बन जाते थे और उनके बच्चे बहुत दोस्त थे। वह बच्चों को गले लगाते और उनको चूमते थे। [14] दुआ करने के लिए गोद में दिए गए बच्चे अगर उनके कपड़े गंदे कर देते थे तो भी वह बुरा नहीं मानते थे। [15] वह अपने पोते-पोतियों को अपने कंधे पर बिठा कर मस्जिद ले जाते थे यहां तक के उन्हें कंधे पर रख कर नमाज़ भी पढ़ते थे। [16] आलस और खाली रहना उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था। [17]

हज़रत आयशा ने कहा कि पैगंबर मुहम्मद की नैतिकता कुरान की नैतिकता है। [18] पैगंबर मुहम्मद ने यह भी कहा कि उन्हें नैतिक गुणों को पूरा करने के लिए भेजा गया था। [19]


[1] अहज़ाब, 21.
[2] क़लम, 4.
[3] तिर्मिधि, सिफतुल क़यामा, 46.
[4] तिर्मिधि, बर्र, 36.
[5] बुखारी, अदब, 38.
[6] अबू दाऊद, अदब, 4.
[7] मुस्लिम, फज़ाइल, 79.
[8] तिर्मिधि, “बर्र”, 69
[9] अबू दाऊद, अदब, 82.
[10] बुखारी, ईमान, 13.
[11] बुखारी, मेगाज़ी, 56.
[12] बुखारी, “ईमान”, 22, “बुयू”, 34, “नफाकात”, 1, “अदब”, 24; मुस्लिम, “ज़ुहद”, 41.
[13] बुखारी, ईमान, 22.
[14] बुखारी, “जनाइज”, 32.
[15] बुखारी, वुदू, 59.
[16] बुखारी, “सलात”, 106.
[17] “बीमारी से पहले सेहत, मरने से पहले ज़िन्दगी से फायदा उठा लें। समय खाली मत बिताओ।” बुखारी, रिकाक 3.
[18] मुस्लिम, मुसाफिरीन, 139.
[19] अहमद बीन हाबंल, मुसनद, II, 381

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