अल्लाह को भूतकाल से भविष्य तक का ज्ञान है[1]। इस समयरेखा में क्या होगा, अल्लाह के पास यह ज्ञान है, तथ्य यह है कि इसके बारे में बदलाव का कारण भी नहीं है। क्योंकि जानना और करना दो अलग-अलग चीजें हैं।
मनुष्य जानता है कि सूर्य किस समय उदय और अस्त होगा। लेकिन, यह जानने का मतलब यह नहीं है कि इसका सूर्य के उदय और अस्त होने पर प्रभाव पड़ता है। इसी तरह, यह तथ्य कि अल्लाह सब कुछ जानता है, मगर मनुष्य की इच्छा को प्रभावित नहीं करता है। अल्लाह जानता है, इस लिए मनुष्य नहीं चुनता। बल्की मनुष्य चुनता है इस लिए अल्लाह जानता है।
अल्लाह वही बनाता है जो मनुष्य चुनता है। वास्तव में, प्रत्येक व्यक्ति अपनी पसंद के लिए जिम्मेदार है: “और हमने हर आदमी के नामए अमल को उसके गले का हार बना दिया है (कि उसकी किस्मत उसके साथ रहे) और क़यामत के दिन हम उसे उसके सामने निकल के रख देगें कि वह उसको एक खुली हुई किताब अपने रुबरु पाएगा।और हम उससे कहेंगें कि अपना नामए अमल पढ़ले और आज अपने हिसाब के लिए तू आप ही काफी हैं[2]”। कोई भी किसी दूसरे का पाप नहीं सहेगा[3]।
इस्लामी साहित्य में, क़द्र (मूल्य, यह धारणा कि आदमी आज़ाद है) शब्द का प्रयोग अल्लाह की अपनी कृतियों के लिए योजना[4] और प्रकृति के संचालन[5] को साकार करने के लिए किया जाता है। नियति को दो भागों में बांटा गया है: इज़्तिरारी क़द्र और इख़्तियारी क़द्र। इज़्तिरारी क़द्र का अर्थ है कि मनुष्य को चुनने का कोई अधिकार नहीं है; यह ऐसी क़द्र है जो मनुष्य की इच्छा के बहार लिखी जाती है। एक व्यक्ति का लिंग, रूप, परिवार और देश जिसमें वह पैदा होता है, और कुछ संभावनाएं और सीमाएं इंसान के ıज़तिरारी क़द्रें हैं। इख़्तियारी क़द्र वह है जो एक व्यक्ति अपने इरादे की ताक़त से चुनता है। उदाहरण के लिए, विवाह के लिए व्यक्ति का चुनाव करते समय या किस कार्यस्थल के लिए आवेदन करते समय कुछ विशेषताओं पर ध्यान देकर यह चुनाव करना इख़्तियारी क़द्र है। यह तथ्य है कि अल्लाह इस व्यक्ति या इस संस्था को जानता है, किसी व्यक्ति की पसंद पर बाध्य नहीं है।
[1] सूरह अनाम, 73.
[2] सूरह इसरा, 13-14.
[3] सूरह फातिर, 18.
[4] अब्दुल्ला बिन उमर (रज़) फ़रमाते हैं: मेरे पिता, उमर बिन अल-खत्ताब ने मुझे निम्नलिखित बातें बताईं : एक दिन, जब हम हज़रत मुहम्मद (सल्ल) के साथ थे, एक सफेद पोशाक में और जेट काले बालों वाला एक आदमी दिखाई दिया। उस पर यात्रा का कोई निशान नहीं था, और हम में से कोई भी उसे नहीं जानता था। वह पैगंबर के बगल में बैठ गए और अपने घुटनों को उनके घुटनों पर रख दिया और अपने हाथों को उनकी जांघों पर रख दिया। “मुझे विश्वास के बारे में बताईये।” कहा। हज़रत मुहम्मद (सल्ल) ने फरमायाः “यह अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी किताबों, उसके नबियों और आख़िरी दिन पर तुम्हारा ईमान रखना है। यह की अपने अच्छे और बुरे भाग्य पर भी विश्वास करना है।” मुस्लिम, ईमान, 1.
[5] सूरह राद, 8; फुरकान, 2.