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इस्लाम में जातिवाद

इस्लाम धर्म जाति को श्रेष्ठता या कमजोरी नहीं मानता। यह उन लोगों को भी चेतावनी देता है जो इन मानदंडों के आधार पर लोगों का मूल्यांकन करते हैं। लोगों में श्रेष्ठ कौन है, इस प्रश्न पर अल्लाह उत्तर देता है कि जो अवज्ञा से सबसे अधिक परहेज करता है वह श्रेष्ठ है।[1] जैसा कि इस उत्तर से समझा जा सकता है, ‘जिन मुद्दों को चुनने का अवसर नहीं है’ के ढांचे के भीतर लोगों को वर्गीकृत या न्याय करना सही नहीं है ।

जब उन्होंने पैगंबर मुहम्मद से पूछा कि जातिवाद क्या है, तो उन्होंने जो परिभाषा दी वह 21 वीं सदी में भी इसकी एहमियत वही है: “जो नसलवाद का आह्वान करता है वह हम में से नहीं है। जो जातिवाद के लिए लड़ता है वह हम में से नहीं है। नसलवाद के लिए मरने वाले हमारे बीच नहीं हैं।” [2] इस्लाम में एकता नस्ल या राष्ट्रीयता से नहीं, बल्कि मुस्लिम होने से प्राप्त होती है: “मोमिन केवल भाई हैं, इसलिए अपने दोनों भाइयों के बीच शांति बनाएं और अल्लाह की अवज्ञा से सावधान रहें, ताकि आप उसकी दया प्राप्त कर सकें।” [3]

लोगों की सामान्य विशेषताओं का हवाला देते हुए, पैगंबर मुहम्मद ने लोगों को लगातार याद दिलाया कि राष्ट्र या जाति को लोगों के बीच श्रेष्ठता या कमजोरी नहीं माना जाना चाहिए। पैगंबर मुहम्मद उस व्यक्ति को परिभाषित करते हुए कहते हैं: जो किसी जाति की श्रेष्ठता के नारे लगा कर इर्दगिर्द लोगों को इकट्ठा करने के लिए कहता है, इस लक्ष्य के लिए प्रयास करता है, इस रास्ते पर मर जाते हैं, वह मेरे बताए गए रास्ते पर नहीं है।[4]

हज़रत मुहम्मद जो लोगों को दो वर्गों में बांटते हैं, कहते हैं कि लोगों का बटवारा इस्लाम के मुताबिक ज़ात, देश या नस्ल कोई मायने नहीं रखती है ना ही किसी को ऊपर या नीचे करती है । हज़रत मुहम्मद कहते हैं: “ ए लोगों! अल्लाह ने तुम्हें जातिवाद, नसलवाद और अपने दादाओं के नाम पर शेखी बघारने से दूर कर दिया है। अल्लाह की नज़र में इन्सान दो तरीके का है, अच्छे कार्य करने वाला अल्लाह कि नज़र में सबसे अच्छा और पापी, दुखी और अयोग्य व्यक्ति उसकी नज़र में नीचा है। इन्सान आदम की औलाद है और अल्लाह ने आदम को मिट्टी से बनाया है” । [5]

हज़रत मुहम्मद मारने से पहले अपने अंतिम उपदेश में इस बात पर ज़ोर दिया है कि: अरबों का गैर अरबों पर, गैर अरबों का अरबों पर, सफेद चमड़ी वाले का काली चमड़ी , काली चमड़ी वाले का सफेद चमड़ी पर गुनाह से बचना और अच्छे काम करने के अलावा कोई श्रेष्ठता नहीं है कहते हुए मनुष्य के बीच ऊंच नीच की कोई जगह नहीं है । [6]


[1] हुजुरत, 13.
[2] अबू दाऊद, अदब, 111-112.
[3] हुजुरत, 10.
[4] अबू दाऊद, अदब, 111-112.
[5] तिर्मिधी, तफसीरुल क़ुरआन, 49; द 5116 अबू दाऊद, अदब, 110-111.
[6] इब्न हमबल, व, 411.

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